Friday, 11 September 2015

HINDI AUR HUM

                                             HINDI AUR HUM



आज चारो तरफ 10 वे विश्व हिंदी सम्मलेन की चर्चा है प्रधानमंत्री सहित कई बड़े नेता हिंदी के प्रचार और विकास की बात कर रहे है ।पर मेरा मत भिन्न है मेरे ख्याल से हिंदी को पुनरुत्थान की नहीं पुनर्जीवन की जरूरत है । में अपनी कोई बात आप के सामने रखूँ उससे पहले हिंदी से जुड़े कुछ भ्रांतियों और तथ्यों पर एक नज़र डाल लेते है ।
1- यु तो हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है पर उच्चतम न्यायालय,भारतीय सेना ,कई राज्यो के उच्च न्यायालय डाक्टरी और इंजीन्यरिंग जैसी उच्च शिक्षाओ में हिंदी का उपयोग ही मान्य नहीं है ।याने की हर वो जगहा जिस के साथ उच्च या सर्वोच्चता जुडी हो उस में प्रवेश पाने के लिए आप को हिंदी बहार छोड़ के जाना पड़ेगा ठीक वैसे है जैसे मंदिर के बाहर जुते।

2-दूसरा मिथक ये है भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिन्दी है ये भ्रम उत्तरी भारत के 5 राज्यो से उपजता है ।पर मा. प्र. के इंदौर में  जन्म लेने के बावजूद में अपने 26 साल के जीवन काल में चन्द लोगो से मिला हु जो हिन्दी समझते है बोलना जानते है। बाकि तो सब हमारी आम बोलचाल की भाषा हिंदुस्तानी को हिन्दी समझ के खुश् हो लेते है।हिंदुस्तानी और हिन्दी में वही फर्क है जो संस्कृत और उर्दू में है ।मतलब पुरे हिन्दुस्तान में हिन्दी बोलने वाले बमुश्किल 4-5 प्रतिशत लोग होंगे।

3- तीसरी और अंतिम भ्रान्ति की हिन्दी हिन्दुओ की या हमारे देश की पहचान है ,हमारी सांस्कृतिक भाषा है ,आप को बता दू की हमारे जितने भी प्रसिद्ध रचनाकार या रचनाएँ है जिन पर हम गर्व करते है ,जिन्होंने पुरे विशव में ख्याति पायी है उन् में से किसी का नाता हिंदी से नहीं था चाहे वो कालिदास हो तुलसीदास हो सूरदास हो ग़ालिब ,कबीर या खुसरो ।इन् सभी महान रचनाकारों की रचनाये या तो आप को उस समय की राजभाषा में मिलेंगी या फिर बिलकुल खड़ी बोली में

फिर अपनी बात पर लौटता हु की हिन्दी को पुनर्जीवन की जरूरत है क्यों की  आप को पता होगा की ऑक्सफ़ोर्ड वाले हर साल एक सुची जाहिर करते है जिस में वो बताते है इस साल अंग्रेजी में कितने नए शब्द जुड़े इस के विपरीत हम हर साल बिना सुची जाहिर करे हिन्दी में से 4-5 पुराने शब्द अंग्रेजी या किसी और भाषा के शब्दों से बदल लेते है ।आप को ध्यान दिलाना चाहता हु की पिछले 70-80 सालो में जितने भी नए अविष्कार हुए उन् के हिन्दी नाम ही नहीं है मसलन मोबाइल ,चाय रेल, मोटरसायकिल इत्यादि-इत्यादि जो कोई इन् में हिंदी नाम बताते है वो दरअसल भाषा का मजाक उड़ाते है क्यों की नाम उन् नामो को बोलने में सुबह से शाम हो जाती है । इस लेख में कोई समाधान नहीं दिया जा रहा है क्यों की इतने जटिल विषय पर समाधान देने की मेरी हैसियत नहीं ।लेख लिखने का कारण बने एक पत्रकार बन्धु जो हिन्दी सम्मलेन में बोल रहे थे की हिन्दी सभी भाषाओ की जननी है ।हिन्दी कैसे सभी भाषाओ की जननी हो सकती है जबकि शब्द "हिन्दी" खुद फारसी भाषा का है।

No comments:

Post a Comment