Tuesday, 29 September 2015

SATYAGRHA YA DURAGRHA

06/09/15


     
                                                                     
कल सरकार ने हड़ताल कर रहे सेवानिवृत्त सैनिको की one rank one pension की मांग को स्वीकार कर लिए । इससे न तो कोई खुशी की नहीं संतुष्टी की लहार दिखाई दी अन्दोलनकर्ताओ का कहना है की सरकार ने उन् के द्वारा सोपे गए मसौदे के 6 बिन्दुओ में से सिर्फ 1 को ही यथावत माना है बाकि सब में कुछ न कुछ उपांतरण किया जो की नागवारा है ।
में पूर्णतः OROP के पक्ष में हु और मानता हु की सेवानिवृत्त सैनिको को ससम्मान उन् का अधिकार मिलना चाहिये ।
                                                    पर अपनी मांगो के मसौदे को शब्दश   मनवा लेने की ज़िद्द को हम पहले भी कई बार देख चुके है चाहे वो अन्ना जी का लोकपाल हो या मज़दूर संघ् के मांग ।
विचारणीय पक्ष यह है की आज इस नाटकीय राजनीती के दौर में हर बड़ा परिवर्तन किसी न किसी न किसी आंदोलन की कोख से ही जन्म लेता है और हर बार आंदोलन कर्ताओ को जिद्द होती है की उन् की बात शब्दशः मान ली जाये । इस परिदृश्य में तो सरकार या प्रधानमंत्री की उपयोगिता सिर्फ रबर स्टाम्प जैसी ही दिखती है यानि बिना किसी विचार के सिर्फ अनुमति देना । अगर ऐसा है तो फिर इतनी बड़ी और खर्चीली व्यवस्था को रखने से क्या लाभ जिस में देश के उत्कृष्ट दिमाग मने जाने वाले नौकरशाह ,मंत्री ,प्रधानमंत्री इत्यादि है पर उन् का  कोई काम  नहीं ।
बेशक सत्याग्रह लोकतंत्र का सबसे मजबूत सस्त्र है पर इस तरह अविवेक पूर्ण अपने निजी स्वार्थ की लिए इस का उपयोग करना ठीक उस ही तरह है जिस तरह कोई उस डाली को कुल्हाडे से कटे जिस पर वो बैठा है।

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